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आसमां भी झुकता है

dare 2 think
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“सरकार की नीतियाँ हमेशा सही होती है , और हम उसकी आलोचना करने की क्षमता में नहीं” ऐसा हमेशा ही मुझे समझाया गया था | और किसी एक अकेले इंसान के लिए सरकार को उसकी गलती का एहसास करवाना , नामुमकिन है , मुझे यह भी समझाया गया था | पर इन दो दिनों में जो कुछ भी हुआ उसने मुझे अपनी यह कहानी आप सबको बताने को मजबूर कर दिया |
डेल्ही पब्लिक लाइब्रेरी (Delhi Public Library) के साथ उनकी नीतियों के खिलाफ 2011 में मैंने जो अभियान प्रारंभ किया था वो अंततः सफल हुई । और संस्था ने अपने दरवाज़े सभी के लिए खोल दिये ,उन मानदंडो को सुझाते हुए जो मैंने उन्हें तब सुझाये थे । इस क्रम में न जाने कितना समय व्यतीत हुआ , और लगभग अकेले ही सफ़र तय करना पड़ा । जिन तथाकथित बुद्धिजीवों से सहयता मांगी कुछ ने मुझे ही गलत कहा तो कुछ ने मदद के बदले मेहनताने की मांग रख दी । संघर्ष लम्बा है सो पूरा नहीं लिख रहा , पर जैसा मेरे मित्रों ने कहा इस बात का पता सबको चले सो विचारों के इस सागर में अपनी यह बोतल तैरा रहा हूँ , जिसे भी मिले वह समझे उसे क्या करना है ।
कुल जमा एक बात समझ में आई , 1951 से जो भेदभाव पूर्ण नीति चल रही थी वो 2013 में एक सामान्य आम आदमी के विरोध मात्र से परिवर्तित हो गयी , “एक राष्ट्रीय स्तर पर धमाका हुआ , बिना आवाज ” । पर एक बात तो स्पष्ट हुई , यदि हम सही हो तो आसमां को भी झुकना ही पड़ता है ।
और इसका एक श्रेय मैं RTI को भी देना चाहूँगा ।
prav

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