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मैं , केवल मैं

dare 2 think
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सामने जो प्रतिरूप है
जो आईने में होता साकार है
क्या वह मैं हूँ ?

क्रोध,दर्प,अभिमान
मोह,लोभ,पीड़ा
पाने का सम्मान
गंवाने का अपमान
जिस सीने में है भरा,
क्या , वह है मेरा ही ?

इस शरीर में जो है
करता विश्वास होने का
इस नश्वर का स्वामी ,
क्या वह मैं ही हूँ ?

अवसर,मौके , बारी
का जो बेइंतहा से
कर रहा हो इंतजार
खुद की दुनिया में ही
मगन बाहर से है बेखबर
वह एहसास क्या मैं ही हूँ ?

या, हूँ मैं विश्वास !
ब्रम्हाण्ड की सूक्ष्मता से
कणों की विशालता में
मिल रहा जो तत्व है ,
क्या वह मेरा है ?

यह जो भी है , वह क्या है ?
है वह क्या मेरा , या हूँ मैं कुछ उसका ?

प्रश्न तो यह है की –
मैं क्या हूँ और क्यूँ हूँ ?

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